ये मेरे शहर को क्या हो रहा हे
ये मेरे शहर को क्या हो रहा हे
जहर का बैलून सा नजर आ रहा हे !
हर इंसान इंसान से ही डरा रहा हे
चेहरा छुपाये शहर में घूम रहा हे !
बच्चों का बचपन मोबाइल में खो रहा हे
ये मेरे शहर को क्या हो रहा हे !
जवान जवान होने से पहले बूढ़ा नजर आ रहा हे
बालो की सफेदी काला करके छुपा रहा हे !
बुढ़ापा अपने पुराने सपनो में जिए जा रहा हे
मरने से जायदा अपनों का डर सता रहा हे !
हे ईश्वर! इतना कर दो इंसान में इतनी इंसानियत भर दो
इंसान इंसान से ना डरे !